The difference between future and options is that while futures are linear, options are not linear. Initial Cash Flow or Margine is Calculated as : So initially ABC Co. has to put $68,850 into its margin accounts in order to establish its position which will give company two contacts for next 3 month. Other common derivatives include futures, forwards and swaps. For example, if someone buys a July crude oil futures contract (CL), they are saying they will buy 1,000 barrels of oil from the agreed price upon the July expiration, regardless of the market price at that time. फ्युचर की कुछ मुख्य बातें (Some highlights of the future), ↗️फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward derivatives), Forward Derivatives in hindi (फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स की समझ), Overseas Citizenship of India (विदेशी भारतीय नागरिकता), PESA Act 1996 (पेसा अधिनियम: संक्षिप्त परिचर्चा), types of urban local governance (शहरी स्थानीय शासन के प्रकार), Municipalities in India (नगर निगम : संक्षिप्त परिचर्चा), Berubari Case in Hindi (बेरुबाड़ी मामला पर चर्चा), Panchayati Raj System (पंचायती राज: संक्षिप्त विश्लेषण), Panchayati raj in India : Historical Background in hindi, Central Information commission of India explained in Hindi. ALL RIGHTS RESERVED. Let us look at the following two scenarios. Common stocks. Conclusion: The Importer has effectively hedged his loss by entering in the future contracts and thereby null and void his loss because of adverse movement in the exchange rate. Case -2:- The Importer decided to hedge his position by going in the currency futures market. Jahr. Let’s say Parag Shirts is looking to complete an order of 10,000 shirts in the next 3 months.. You can also go through our other suggested article to learn more: All in One Financial Analyst Bundle (250+ Courses, 40+ Projects). Conventional futures are derivatives, which values derive from other financial products. मान लेते हैं कि एक गेहूं खरीददार (Wheat Buyer) का, एक गेहूं बेचने वाले किसान के साथ एक फ्युचर कांट्रैक्ट हो जाता है कि वो 2 … इतना पहले याद रखिए कि एक फ़िक्स्ड मार्जिन अमाउंट (Margin amount) ट्रेडिंग अकाउंट में रखना पड़ता है। ये कितना होता है ये ब्रोकर (Broker) डिसाइड करता है। मार्जिन अमाउंट वो कम से कम अमाउंट होता है जितने में आपको ब्रोकर फ्युचर खरीदने देता है।, इसमें दो तरह से सेटेलमेंट होता है। पहला है Cash Settlement और दूसरा है Delivery Settlement। ज़्यादातर Cash Settlement का ही उपयोग होता है। जैसे अगर मान ले कि किसान को 500 रुपए का फायदा हुआ तो 500 रुपए किसान के अकाउंट में ट्रान्सफर हो जाएगा। इसी तरह अगर खरीददार को 500 रुपए का अगर फायदा हुआ तो 500 रुपए खरीददार के अकाउंट में क्रेडिट हो जाएगा।, लेकिन अगर खरीददार कैश नहीं लेना चाहता है बल्कि गेहूं ही लेना चाहता है तो फिर उस किसान को उस गेहू की डेलीवेरी उसे देनी पड़ेगी। लेकिन आम तौर पर ऐसा होता नहीं है। क्यों नहीं होता है? The above examples explain to us how hedging protects the hedger from unfavorable price movements while allowing continued participation in favorable movements. Futures trading is especially common with commodities. ABC Co. uses 90,000 Gallons of Gas every Month and each Contract was for 42,000 Gallons. इस लेख में हम फ्युचर डेरिवेटिव्स (Future derivatives) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे, तो लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।यहाँ क्लिक करें – ↗️शेयर मार्केट के बेसिक्स को समझें, पिछले लेख में हमने ↗️फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward derivatives) को अच्छे से समझ लिया है। हमने देखा था की फॉरवर्ड कांट्रैक्ट में कुछ समस्याएँ थी जैसे कि उसमें पारदर्शिता नहीं थी, अगर कोई विवाद होता है तो उसका सेटेलमेंट बहुत मुश्किल था आदि। फ्युचर और ऑप्शन में इस तरह की कोई परेशानी नहीं इसके अलावा इसमें कई अच्छी बाते हैं जो ट्रेडर्स को भरोसे में रखता है। तो आइये इस लेख में फ्युचर डेरिवेटिव्स (Future derivatives) को समझते हैं।, फ्युचर्स (Futures) भविष्य के लिए आज के डेट में आज के प्राइस पर किया गया एक कांट्रैक्ट है। यानी कि फ्युचर्स भी फॉरवर्ड की तरह ही एक कांट्रैक्ट है। लेकिन यहाँ पर जो अंतर है वो ये है कि यहाँ मध्यस्थता (Mediation) के लिए एक्स्चेंज होता है। ये एक्स्चेंज सारे के सारे लेन-देन पर नजर रखते है और ये खरीददार और बेचने वाले दोनों को एक लीगल प्लैटफ़ार्म प्रोवाइड करते हैं।, मूलतः दो कारणों से लोग फ्युचर कांट्रैक्ट करते हैं, या तो हेजिंग (Hedging) के लिए या फिर ट्रेडिंग (Trading) के लिए। हेजिंग मतलब अपना रिस्क कम करने से है जबकि ट्रेडिंग का मकसद ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना होता है। इसका क्या मतलब है ये आगे क्लियर हो जाएगा।, फ्युचर डेरिवेटिव्स (Future derivatives) शॉर्ट टर्म के लिए होता है और ये शॉर्ट टर्म 1 महीने, 2 महीने और 3 महीने तक होता है। अगर हम 1 महीने का फ्युचर कांट्रैक्ट करते हैं तो उसे नियर मंथ (Near month) कहा जाता है और इसकी वैलिडिटि उस महीने के आखिरी गुरुवार (Thursday) तक होता है, यानी कि ये उसका एक्सपाइरी डेट होता है।, यहाँ पर ये याद रखिए कि शेयर एक्सपायर नहीं होता है लेकिन फ्युचर और ऑप्शन एक्सपायर होता है।, इसी तरह जब आप 2 महीने का फ्युचर कांट्रैक्ट करते हैं तो उसे नेक्स्ट मंथ (Next Month) कहा जाता है, और अगर आप 3 महीने का फ्युचर कांट्रैक्ट करते हैं तो उसे फार मंथ (Far month) कहा जाता है। सभी का एक्सपायरी आखिरी मंथ के लास्ट गुरुवार (Thursday) को ही होता है।, ◾ दूसरी बात ये है कि ये एक बाइंडिंग कांट्रैक्ट होता है यानी कि एक बार अगर आप इस कांट्रैक्ट में इंटर कर गए तो आप वापस नहीं आ सकते यानी कि जितने महीने का आपने कांट्रैक्ट किया है उस महीने के लास्ट थर्सडे तक। {ये वाला पॉइंट याद रखिए यही वो पॉइंट है जो ऑप्शन (Option) को जन्म देता है}, ◾ तीसरी बात ये कि चूंकि फ्युचर एक्स्चेंज के देख रेख में होता है। इसीलिए यहाँ पर ट्रेडिंग के लिए डीमैटअकाउंट (Demat account) की जरूरत पड़ती है। आइये इसे एक शेयर डेरिवेटिव्स के उदाहरण से समझते है।, मान लेते हैं कि एक गेहूं खरीददार (Wheat Buyer) का, एक गेहूं बेचने वाले किसान के साथ एक फ्युचर कांट्रैक्ट हो जाता है कि वो 2 महीने बाद 1 क्विंटल गेहूं 1000 रुपए में खरीदेगा, और किसान उसे इतना में ही बेचेगा भले ही मार्केट में उस समय गेहूं का मूल्य कितना भी क्यों न हो।, अब यहाँ पर किसान की जो पोजीशन है उसे शॉर्ट पोजीशन (Short position) कहा जाएगा क्योंकि किसान बेच रहा है, वहीं खरीददार का जो पोजीशन है उसे लॉन्ग पोजीशन (Long position) कहा जाएगा क्योंकि ये खरीदने वाला है।, अब दोनों ने तो 1000 रुपए में कांट्रैक्ट कर लिया है लेकिन गेहूं का मार्केट प्राइस तो रोज अप और डाउन होगा। ऐसे में यहाँ पर तीन स्थितियां हो सकती है – 2 महीने बाद जब Square off (यानी कि कांट्रैक्ट खत्म होने का वक्त) आएगा तो या तो गेहूं का मार्केट या प्राइस बढ़ जाएगा या कम हो जाएगा या फिर उसी दाम पर स्थिर होगा।, अगर मान ले कि कांट्रैक्ट खत्म होने के दिन उस दिन 1 क्विंटल गेहूं का मार्केट प्राइस बढ़कर 1000 रुपए से 1500 रुपए हो जाता है तो उस स्थिति में क्या होगा?